How Does Internet Work? Internet Explained in Hindi

इंटरनेट कैसे काम करता है?

दुनिया में 530+ करोड़ से ज्यादा लोग इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं। भारत इंटरनेट यूजर्स के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। इंटरनेट मोबाइल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 दिसंबर में 50 करोड़ से ज्यादा लोग किसी न किसी तरीके से इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे। फिहलाल अगर हम बात करे तो इंटरनेट मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया(IAMAI) और KANTAR की एक रिपोर्ट जारी हुई है जिमसें ये अनुमान लगाया गया है दोस्तों की भारत में सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 2025 तक मौजूदा 759 मिलियन से बढ़कर 900 मिलियन यानी (90 करोड़)होने की उम्मीद है।
इंटरनेट काम कैसे करता है? जब आप इंटरनेट ऑन करते हैं तो वह क्या चीज है जिससे आप जुड़ जाते हैं। कैसे एक क्लिक करते ही कोई भी मैसेज गाना या वीडियो आपकी स्क्रीन तक पहुंच जाता है? आपके स्क्रीन बदलने की नजर के बीच क्या-क्या होता है?क्या आप यह जानते हैं?
Internet kya hai? इंटरनेट कैसे काम करता है?


इंटरनेट क्या काम करता है?

Internet मतलब इंटरकनेक्टेड नेटवर्क बहुत सारी डिवाइसेज का, मोबाइल का, कंप्यूटर का, राउटर्स का, सर्वर का, यह सारे डिवाइस है,इन सभी device का एक बहुत बड़ा नेटवर्क है। नेटवर्क का काम है दोस्तों कनेक्ट करना इन सभी डिवाइस को आपस मे।

अब सवाल उठता है कि आखिर क्यों जोड़ना है इन्हें?

इन्हे जोड़ने का मुख्य कारण है कि data का आदान प्रदान हो।
दोस्तों यहां Online जितने भी article आप पढ़ते है या visual Content देखते है या फिर बात करे जितने भी online चीजे उपलब्ध होती है सभी upload करते है, पर यह डाटा आपके फोन तक और आपके लैपटॉप तक पहुंचता कैसे है और यही हमारा दूसरा सवाल है इंटरनेट आखिर काम कैसे करता है?
इनके बीच एक बिचौलिया है जो है ,सरवर जो भी डाटा इंटरनेट पर मौजूद है या जो भी डाटा इंटरनेट पर मौजूद होता है वह किसी न किसी सर्वर पर रखा होता है। सर्वर भी एक टाइप का कंप्यूटर ही होता है बस उसका काम होता है कि वह उस डाटा को सहेज के रखे और जिसकी जैसी डिमांड हो उसके हिसाब से डाटा सप्लाई करे और डेटा को स्टोर करता रहे। जो भी online content अपलोड होता है तो यह डाटा एक सर्वर में जाकर स्टोर हो गया होता है और जब कोई इसके लिंक पर क्लिक करता है तो सरवर ने इसे उसके डिवाइस तक यह डाटा पहुंचा दिया होता है। 

सरवर कहां पर होता है?

जैसे डाटा सेंटर में होता हैं जैसे खूब सारा सामान इकट्ठा करने के लिए गोदाम या वेयरहाउस होते हैं ना वैसे ही खूब सारा डाटा इकट्ठा करने के लिए बड़े-बड़े डाटा सेंटर्स होते हैं और एक-एक डाटा सेंटर में खूब सारे सर्वर रखे होते हैं। डाटा सेंटर्स में इन सर्वर को सुविधा और सुरक्षा मुहैय्या की जाती है। आप यह article Google पर पढ़ रहे हैं या हम कोई वीडियो यूट्यूब पर देख रहे हैं। फेसबुक पर देखते है। इंस्टाग्राम ,ट्विटर कहीं भी देखते हैं वो सारा डेटा गूगल के डाटा सेंटर में रखा होता है। यूट्यूब गूगल का है तो गूगल के डाटा सेंटर में इसका डेटा होगा।लेकिन हर वेबसाइट अपना डाटा सेंटर नहीं खोलती जैसे कि www.vikram2bikiyo.blogspot.com ने अपना डेट सेंटर नहीं खोला है। 
यह छोटी-छोटी जो वेबसाइट होती है दूसरों के मुकाबले में जो छोटी होती है वह दूसरों के डाटा सेंटर के सर्वर इस्तेमाल करते हैं। जो दूसरों को अपने डाटा सेंटर्स के सर्वर किराए पर देती है। अमेजॉन वेब सर्विसेज का आपने नाम सुना होगा। नेटफ्लिक्स और दूसरी ऐसी वेबसाइट से वह भी अमेजॉन से एडिट सर्वर किराए पर लेती है। यहां पर जो मैंने आपको ज्यादातर कंपनी के नाम बताएं यह अमेरिकन कंपनी है। फेसबुक, गूगल , माइक्रोसॉफ्ट और अमेजॉन यह सब अमेरिकन कंपनी है इनका डाटा सेंटर है वह भी अमेरिका में ही है। मतलब यह डाटा आपके घर में हजारों किलोमीटर दूर अमेरिका के किसी डाटा सेंटर से आ रहा है। वहां पर यह सारा डेटा कायदे से जमा करके रखा हुआ है। और हर रोज जो नया डाटा इन वेबसाइट पर अपलोड होता है वह उन्हीं डाटा सेंटर्स में जाता है ।

अब इस डाटा को दुनिया के दूसरे छोर पर बैठे यूजर्स तक यानी आप तक पहुंचना है तो यह कैसे होता है? 

यह डेटा आपके तक सेटेलाइट के जरिए वहां से डाटा ट्रांसफर कर लिया जाता। लेकिन यह काफी धीमी प्रक्रिया है। सेटेलाइट पृथ्वी की सतह से बहुत ऊपर होती है। मतलब इस डेटा को पहले तो सेटेलाइट पर पहुंचाना पड़ेगा फिर वहां से वापस धरती पर लाना होगा।यह लम्बी दूरी हो जाती है फ्लैट धरती के मुकाबले। तो इसमें काफी समय लग जाता है और वह स्पीड नहीं मिल पाती जो आपको चाहिए।
तो इसका एक समाधान निकाला गया ऑप्टिकल फाइबर केबल। पूरी दुनिया में केबल्स का जाल बिछाया गया है। फाइबर का एक स्टैंड होता है जो एक बहुत ही पतला तार होता है। जो फाइबर आकार होता है वह हमारे बाल जितना पतला होता है और एक फाइबर केबल में ऐसे कई सारे स्ट्रैंथ होते हैं। ऑप्टिकल फाइबर से डाटा लाइट सिगनल के जरिए भेजा जाता है। आम तौर पर जो वायर हम देखते हैं वह कॉपर वायर होता है और उसमें इलेक्ट्रिकल सिग्नल होता है। जो विद्युत इलेक्ट्रिसिटी से भेजा जाता है।
लेकिन जो रोशनी होती है उसके लिए भी डाटा भेजा जा सकता है। और फाइबर ऑप्टिक के अंदर यह डाटा लाइट सिगनल के फॉर्म में भी भेजा जा सकता है। लाइट की स्पीड दुनिया में सबसे ज्यादा होती है लगभग 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड और फाइबर में डेटा लगभ लाइट की स्पीड से ही भेजा जाता है पूरा लाइट की स्पीड से नहीं भेजा जाता है। इसलिए क्लिक करते ही डेटा आपकी स्क्रीन पर तुरंत हाजिर हो जाता है। पर हर उस जगह तक इन ऑप्टिकल फाइबर केबल्स की पहुंच है। जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी है कि इंटरनेट सर्वर वही तक पहुंच पाता है जहां यह केबल पहुंच पाती है। सारे महाद्वीपों को इंटरनेट से जोड़ने के लिए समंदर के नीचे इन्हीं फाइबर केबल्स का जाल बिछा हुआ है। कई बड़ी कंपनियां समंदर की गहराई में फाइबर केबल का काम करती है। तो यह केबल अंडरग्राउंड यानी  की समुंदर के नीचे हो जाती है। जमीन के नीचे से यह केबल्स आपके शहर मोहल्ले और घर तक पहुंचती है। यह अलग-अलग जगह पर  डिपेंड करता है कि फाइबर टू द नेबरहुड होता है ,फाइबर टू द होम होता है। यानी आपके आसपास तक फाइबर आ रहा है या सीरियल आपके घर तक ही आ जा रहा है तो इस पर डिपेंड करता है लेकिन हमारे फोन में तो ऐसा कोई फाइबर केबल नहीं जुड़ा है फिर भी इसमें जबर इंटरनेट चलता है तो क्योंकि यह फाइबर केबल से ही आपके तक पहुंचता है। यह केबल सबसे नजदीक मौजूद सेल फोन टावर से जुड़ी हुई है। जिससे आपका फोन में सिग्नल आता है
फाइबर से होते हुए डाटा सेल फोन टावर तक आता है और वह टावर आपके फोन में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स यानी विद्युत चुंबकीय तरंगों की शक्ल में वह डाटा आपके फोन तक पहुंचा देता है। और आप अपने फोन पर इंटरनेट का मजा लेते है।

अब हम यह जानने की कोसिस करते है कि इन केबल्स के जरिए डाटा का लेनदेन कैसे होता है?

मतलब इतने सारे सर्वर है, इतने सारे फोन है, लैपटॉप है, कंप्यूटर इतने सारे डिवाइस इंटरनेट से जुड़े हुए हैं। तो सर्वर को कैसे और आपके फोन को कैसे पता चलता है कि किस वाले सर्वर से डाटा मंगाना है या यह डेटा कहां पर रखा हुआ है। तो दोस्तों यहां काम आता है आईपी ऐड्रेस (IP Address) इसे पोस्टल सर्विस से समझ सकते है। डाटा भी आपके फोन तक वैसे ही पहुंचता है या आपकी डिवाइस तक वैसे ही पहुंचता है जैसे आपके घर में पोस्ट से खत आता है। जिस तरह आपके घर का एक यूनिट एड्रेस होता है जिसकी मदद से डाकिया आप तक खत पहुंचा देता है। ठीक उसी तरह इंटरनेट से जुड़े हर डिवाइस का एक यूनीक पता होता है। मतलब हर डिवाइस का जैसे सर्वर का भी होगा, राउटर का भी होगा, लैपटॉप का फोन का इत्यादि जितने भी डिवाइस इंटरनेट से जुड़े हुए हैं। उन सब का एक यूनिक एड्रेस होता है और उसे कहते हैं आईपी एड्रेस (IP Address) यानी इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस। यह भी एक नंबर होता है जैसे 189.78.644.78 इस टाइप का कुछ एड्रेस होता है। जो याद रखना मुश्किल होता है।
तो फाइबर पाइपलाइन से होती हुई उसे वेबसाइट के सर्वर तक एक रिक्वेस्ट आती है। हर वेबसाइट का एक सर्वर होता है जहां उसका उत्तर रखा हुआ होता है। तो जैसे ही आप लिंक पर क्लिक करते हैं तो उस वेबसाइट के सर्वर तक एक रिक्वेस्ट जाती है। और वह आईपी एड्रेस दिखाके की इजाजत मांगता है जहाँ डाटा पहुंचना है। उससे वेबसाइट का डाटा पहुंचता है। फिर सर्वर से हजारों किलोमीटर दूर से वह डाटा आपके आईपी एड्रेस के लिए रवाना होता है। 

हमारी रिक्वेस्ट कैसे पहुंचती है?

वह किसी वेब ब्राउज़र में वेबसाइट इंटर करके या किसी लिंक पर क्लिक करके जब आप ऐसा करते हैं तो उसे पर रिक्वेस्ट पहुंचती है। हर वेबसाइट के सर्वर का भी एक आईपी एड्रेस होता है। मैंने आपको बताया था तो जिसकी मदद से सर्वर तक पहुंचा जा सकता है। लेकिन हर वेबसाइट का आईपी एड्रेस याद रख पाना यूजर के लिए बहुत मुश्किल है। इसलिए आईपी एड्रेस के लिए एक Domain Name दे दिया जाता है। डोमेन नेम हैं जैसे वेबसाइट का नाम होता है, www.youtube.com , www.facebook.comwww.vikram2bikiyo.blogspot.com  ये Domain नेम होते है इन्हें याद रखना आसान होता है। ये डोमेन नाम एंटर करते ही वेब ब्राऊजर उस वेबसाइट का आईपी एड्रेस खोजने में लग जाता है। 
ये ठीक वैसा है जो हम कुछ चीजे याद नही कर पाते तो हम फोन बुक या डायरी मेंटेन करते हैं। और जैसे फ़ोन में नंबर सेव करते है तो अपनी फोन बुक में किसी नाम के सामने उसका नंबर खोजा जाता है। तो इंटरनेट डोमेन नेम और आईपी एड्रेस की भी एक फोन बुक होती है और उसको कहते हैं डीएनएस सर्वर (DNS SERVER) DNS का मतलब है डोमेन नाम सिस्टम। DNS को संचालित करने का काम आईकैन (ICANN) नाम की संस्था करती है। नहीं तो लोगों के बीच लड़ाई मच जाएगी कि मुझे यह आईपी एड्रेस चाहिए मुझे यह डोमेन नाम रखना है। 
आईकैन (ICANN) यानी इंटरनेट कॉरपोरेशन फॉर असाइनमेंट नाम एंड नंबर्स। सर्वर की मदद से हमारा वेब ब्राउज़र उस वेबसाइट का आईपी एड्रेस निकालता है और आपकी रिक्वेस्ट उस वेबसाइट के सर्वर तक पहुंचा देता है। मतलब बताना भी होगा ना की सर्वर को की इस आईपी एड्रेस पर डेटा पहुंचाना है। इस तरीके से आप उस सर्वर से डाटा का लेन देन कर पाते हैं।
जब कोई उत्तर किसी सर्वर से दूसरे डिवाइस के लिए जाने के लिए निकलता है तो थोड़े थोड़े टुकड़े में आता है। जिस तरह पुरी ट्रेन एक साथ नहीं आती उस ट्रेन के अलग-अलग डिब्बे आते हैं। इन्हें डेटा पैकेट्स कहते है। उसी पोस्टल सर्विस से समझने की कोसिस करे तो मान लीजिए अपनी फाइबर पाइपलाइन से कुछ चिट्ठी भेजनी है।तो उस के अलग अलग चिट्ठी अलग-अलग पाइपलाइन से जो सबसे फास्ट पॉसिबल रास्ता होता है। उससे आपको भेज दिया जाता है। इन सभी पैकेट में आईपी एड्रेस से वह अपनी मंजिल पर पहुंचते हैं। यानी आप तक डेटा पहुंचाते हैं और पूरी डाटा फाइल तैयार होती है। इंटरनेट कनेक्शन चलाया होता है। 
तो आपने ध्यान दिया होगा कि जब आप किसी इमेज को खोलते हैं तो वह पूरी दिखने से पहले उसके कई अलग-अलग टुकड़े धीरे-धीरे स्क्रीन पर बनते हैं और फिर बहुत देर बाद वह इमेज पूरी बनती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एक साथ पूरे उत्तर पैकेट नहीं आ पाते हैं। Slow इंटरनेट कनेक्शन में यह डाटा पैकेट अलग-अलग ग्रस्तों से चलते हुए किसी भी क्रम में आ जाते हैं। फिर उन्हें आपस में जोड़ने का काम किया जाता है और 
Internet kya hai? इंटरनेट कैसे काम करता है?


यह कैसे सुनिश्चित किया जाता है की

यह सारे डेटा पैकेट अलग-अलग रास्तों से होते हुए एक ही पते पर पहुंचे। इसका जवाब है इंटरनेट प्रोटोकॉल। डेटा के लेनदेन की प्रक्रिया को बिना किसी रूकावट के अंजाम देने के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं। दोस्तो फिर से बताए कि इंटरनेट प्रोटोकॉल पूरी प्रक्रिया को बिना किसी रूकावट के अंजाम देने के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं इन नियमों को ही हम इंटरनेट प्रोटोकॉल के नाम से जानते हैं।
डेटा के सोर्स और डेस्टिनेशन के बीच कई सारे छोटे-छोटे पड़ाव होते हैं। मतलब ऐसे एक बार में पूरा रास्ता तय नहीं करता है। बहुत सारे चौराहे होते हैं। इन्हें हम कहते हैं राउटर्स। राउटर्स का काम होत है ( मशीन  होती है राउटर्स) तो राउटर्स का काम होता है आईपी एड्रेस के मुताबिक उत्तर को सही दिशा में आगे बढ़ाना।
मतलब डाटा को अगले ऐसे राउटर तक पहुंचा देना जो मंजिल के ज्यादा करीब हो इस सड़क और गाड़ी वाले एग्जांपल से फिर से अच्छे से समझा जा सकता है। मान लीजिए कि हम गाड़ी लेकर किसी अनजान शहर की तरफ निकल पड़े हैं लेकिन हर चौराहे पर एक राउटर नाम का आदमी खड़ा कर दिया है। दिक्कत आती है कि लंबा सफर तय करने में डाटा का सिग्नल कमजोर होने लगता है इसे अटैंयुएशन (Attenuation) कहते हैं। जैसे हमे अपनी गाड़ी में फ्यूल भरवाते रहना जरूरी है  वह फ्यूल खत्म होते रहता है वेसे ही डेटा का भी सिग्नल कमजोर होता रहता है। तो इस डेटा को बूस्ट करना जरूरी है इसे कहते हैं एमप्लीफिकेशन। 
हजारों किलोमीटर के सफर में कई डिवाइस ऐसे लगाए जाते हैं जो सिग्नल को एमप्लीफायर करते रहते हैं। कई बार बहुत सारी डाटा पैकेट सोर्स कंप्यूटर से यानी सर्वर से निकलते है और आपके मोबाइल तक पहुंच ही नहीं पाते हैं। वह रास्ते में कहीं खो जाते हैं। इन्हें Lost Data Packets कहते है। 
डेस्टिनेशन कंप्यूटर यानी जो आपका फोन है, आपका डिवाइस है, और फिर इन डाटा पैकेट को वापस भेजा जाता है। इंटरनेट प्रोटोकॉल के मुताबिक उसमे उसके क्रम से जुड़ी जानकारी भी होती है। मतलब कौन सा डाटा पैकेट आगे लगा है, कौन सा पीछे लगेगा। 
अब डाटा की तो पूरी फाइल होती है, जैसे मान लीजिए कोई इमेज है तो उसमें ऊपर से नीचे तक आपकी फ़ोटो होंगी। लेकिन उसके डेटा पैकेट होंगे जो उसके अलग-अलग हिस्से बढ़ जाएंगे तो, अब

उन्हें सही क्रम में कैसे जोड़ा जाए?

तो इसके लिए भी इंटरनेट प्रोटोकॉल का सहारा लिया जाता है और उन्हें रिट्रीव किया जाता है। वरना क्या होगा कि आपकी पूरी इमेज में सिर नीचे चला गया पैर ऊपर, आगे कुछ भी हो रहा है। पर ऐसा तो नहीं होता है। इंटरनेट प्रोटोकॉल की मदद से डाटा बड़े ही सही तरीके से पहुंचता है। और यह क्रम ऐसे ही बहलता रहता है। 
इसके बाद बड़े सवाल पर आ जाते हैं और पता करने की कोशिश करते हैं कि इंटरनेट का मालिक कौन है?
अब तक इंटरनेट पहुंचाने का काम करती है आपकी आईएसपी(ISP) यानी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर। जैसे आपने जिस कंपनी की सिम ली होगी या जिस कंपनी का ब्रॉडबैंड कनेक्शन लिया होगा तो वह आपकी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर है और आप पैसा भी इसी को देते हैं आईएसपी को।

लेकिन यह पूरा इंटरनेट नहीं चलाते हैं आगे बढे स्केल पर देखे तो इसको तीन स्तर पर बनता गया है। 

1. 
पहली तो बढ़ी बढ़ी कंपनिया होती है जो समंदर के नीचे और जमीन के नीचे या समंदर के नीचे केबल बिछाई होगी पहले स्तर में इन्हें रखते हैं। सबमेरीन ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाई होगी। इन्हें हम टियर वन में रखते है। 
2.
इनके बाद आती है वो ISP जिनकी नेशनल लेवल पर प्रजेंस है। मतलब जिनकी केबल्स देश भर में बिछे हुए हैं, यह टायर 2 की कंपनियां हो गई।
3.
अगर टियर 2 की किसी कंपनी को इंटरनेट सेवा चाहिए तो उसे टियर वन की कंपनी होगा या इस किराए पर लेना होगा जिनकी समुद्र के नीचे बिछी हुई है केबल।जो सबमरीन ऑप्टिकल फाइबर केबल्स है। तो इसके लिए उसे टियर 1 की आईएसपी (ISP) को पैसे देने पड़ेंगे। ठीक इसी तरह टायर 3 में आने वाली लोकल आईएसपी जो होती है। जिनकी लोकल लेवल पर प्रजेंस होती है। स्टेट लेवल पर या किसी बड़े शहर में।कुछ कुछ लोकल ऐसे होते हैं तो उनको टायर 2 की कंपनियों को पैसा देना होगा जिनकी नेशनल लेवल पर प्रसेंस है ताकि वह इंटरनेट अपने ग्राहकों तक पहुंच सके। 

इंटरनेट का मालिक कोन है?

तो इस तरह से हमारा दिया हुआ पैसा इन कंपनियों के बीच बंट जाता है और इनका एक हिस्सा उन कंपनियों को भी मिलता है। जिनके बड़े-बड़े डाटा सेंटर्स होते हैं और फिर आप जो ऐड देखते हैं उनका पैसा वेबसाइट को मिलता है। 
मतलब इंटरनेट का पूरा पूरा मालिक कोई भी नहीं है। अलग-अलग कंपनियों इंटरनेट के अलग-अलग हिस्सों को ऑन करते हैं। लेकिन और इसे संचालित करने के लिए अलग-अलग संस्थाएं आपको बताई थी जैसे (ICANN

इंटरनेट की दुनिया मे क्या सबसे महत्वपूर्ण है?

Internet की दुनिया मे सबसे बडा रोल इंफ्रास्ट्रक्चर का है जिस कंपनी का सबसे विस्तृत इंफ्रास्ट्रक्चर होगा उसकी उतनी ही ज्यादा कमाई होगी। 

Conclusion

तो दोस्तो हमने आपको संक्षेप में बताने की कोशिश की, लेकिन फिर भी इंटरनेट की लिला इतनी विराट है कि इस पर एक बुक भी लिख दी जाए तो कम है। जो जरूरी जानकारी थी वो इसमें बताने की पूरी कोसिस की गई है। इसलिए दोस्तो कई सारी चीज हमें छोड़ने भी पड़ी आपको कितना समझ में आया, कैसा क्या समझ में आया और बेहतर कैसे समझ सकते हैं हमें कमेंट करके बताइए। हम इसमें और ऐड कर देंगे।

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